जिस लोकतंत्र के सहारे देश चलता है. उसे देश कों कुछ चुनिन्दा लोग ही चलाते है. जिनको जनता संसद तक पहुचाए और संसद में बैठने वाले ये सांसद, अगर देश की जनता के साथ गद्दारी करे, तो जनता कों मजबूरन सडको पर उतरना ही पड़ेगा. आखिर हुआ भी वही जो देश की जनता चाहती थी. देश भ्रस्टाचारी तंत्र के चलते अंदर से खोखला होता चला जा रहा है, किसी कों भी इसकी चिंता नहीं है. भ्रस्टाचारी सरकार का सामना किया भी ऐसे 74 साल के वृद्ध ने जो सीधे सरकार की छाती पर जा बैठा और कहने लगा, अब बहुत हो चुका, अब और नहीं होने दूंगा. सरकार ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा. कि महाराष्ट के रालेगण सिद्धि से चलकर कोई हमको टक्कर देगा . "इसलिए कहा जाता है की बुराई पर अच्छाई की जीत."
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