30 नव॰ 2011

देश कों अपनी प्रतिभा की कदर नहीं

भारतीय कबड्डी टीम ने इस बार कबड्डी का वर्ल्डकप जीता तो मुझे बहुत ख़ुशी हुई. सच मानो तो मै फुला नहीं समा पाया. बचपन में मै भी कबड्डी खेला करता था लेकिन वो मेरा देहाती खेल था इसीलिए में उसको ज्यादा तवज्जो देता था. लेकिन यह कभी नहीं सोचा था कि भारतीय टीम कभी कबड्डी में भी वर्ल्डकप जीतकर लाएगी वो भी महिला टीम . एक बार पुरुषो से तो उम्मीद की जा सकती थी लेकिन महिलाओ से नहीं, हमारे भारतीय ग्रामीण खेल गुल्ली डंडा, कबड्डी, खो - खो और हाकी ये तमाम ऐसे खेल है जो विदेशी खेलो के एकदम बराबर होते है जैसे टेबिल टेनिस, शतरंज. बेडमिन्टन इत्यादि . भारत न जाने क्यों इस तरह के खेलो कों नदारद रखता है क्या उसे बताने में यह शर्म आती है कि भारत मै इस तरह के खेल खेले जाते है?


जिस ग्रामीण खेल के आसरे भारत ने कबड्डी वर्ल्डकप जीता उसी भारत में आज भी बहुत सी ऐसी प्रतिभाए छिपी है जो राष्ट्रीय स्तर पर अपना परचम लहरा सकती है लेकिन भारत का खेल मंत्रालय ऐसे खेलो को कभी बढ़ावा नहीं देता. भारतीय हाकी खेल हमेशा से किसी न किसी विवादों में फंसी रहती है चाहे वो हाकी टीम के खिलाडियों के पैसो का मामला हो या फिर हाकी कोच पर लगे यौन शोषण का आरोप हो, कही न कही ये तमाम ऐसे मुद्दे है जो भारतीय खेलो कों पीछे धकेल रहे है. जिनका परिणाम ज्यादा दूरगामी नहीं निकल पाता. हमारे खेलो की दुर्दशा भी यही बताती है कि इन खेलो का भविष्य कुछ जायदा खास नहीं है.भारतीय पुरुष और महिला कबड्डी खिलाडियों ने अपनी ताकत का लोहा मनवाकर यह साबित कर दिया की भारतीय कबड्डी टीम किसी से कम नहीं है. लुधियाना (पंजाब) के गुरुनानक स्टेडियम में पुरुष वर्ग और महिला वर्ग ने कबड्डी का वर्ल्डकप जीतकर एक नया इतिहास रच दिया. एक ओर पुरुष वर्ग ने कनाडा को 59 -25 से मात देकर वर्ल्डकप पर अपना कब्ज़ा किया तो वही दूसरी ओर महिला वर्ग के खिलाडियों ने अपनी ताकत दिखाते हुए इंग्लेंड को 44 -17 से पटखनी देकर कबड्डी वर्ल्डकप का ताज़ा अपने नाम कर लिया ।


भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब किसी भारतीय महिला टीम ने कबड्डी का वर्ल्डकप जीता हो. दर्शको से भरे खचाखच स्टेडियम में भारतीय टीम के नारों की गूंज चारो ओर से सुनाई पड़ रही थी. जिससे भारतीय खिलाडियों के हौसले बुलंद थे. भारतीय पुरुष टीम ने कनाडा कों हराकर एक स्वर्ण पदक और दो करोड़ रुपए जीते लेकिन उधर महिला खिलाडियों ने एक स्वर्ण पदक के साथ-साथ 25 लाख रुपए की नकद धनराशि जीती. कबड्डी वर्ल्डकप जीतने की ख़ुशी में पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने दोनों वर्गो के खिलाडियों कों सरकारी नौकरी देने का वादा किया. लेकिन अब सवाल यही से पैदा होता है कि जिस भारतीय महिला टीम के खिलाडियों ने पहली बार कबड्डी वर्ल्डकप जीता, आखिर खिलाडियों को एयरपोर्ट तक पहुचाने के लिए एक भी गाड़ी उपलब्ध नहीं कराई जा सकी. सीएम भी अपना वादा निभा कर चलता बने, आख़िरकार इन खिलाडियों का क्या कसूर था ? जो कई घंटो तक अपना पच्चीस लाख रुपए का चेक और वर्ल्डकप ट्राफी लिए हुए सड़क पर एयरपोर्ट तक जाने के लिए ऑटो का इंतज़ार करते रहे, उनके साथ न तो कोई आला अधिकारी थे ओर न ही कोई सुरक्षाकर्मी. अब आप यही से अंदाज़ा लगा सकते है कि भारतीय खिलाडियों की इज्ज़त किस तरह से की जाती है यही कारण है कि भारतीय खिलाडी भारतीय खेलो कों छोड़कर विदेशी खेलो की ओर क्यों रुख कर रहे है? उपविजेता टीम को हमारी सुरक्षा और ट्रेवल्स एजेंसियों ने उनको एयरपोर्ट तक वातानुकूलित बस से पहुचाया. लेकिन कबड्डी विश्वविजेता टीम सड़क पर ही टहलती रही।


आखिर देश जा किधर रहा है जो उसे अपनी प्रतिभा की ज़रा भी कदर नहीं. ज़रा याद कीजिएगा इसी साल के अप्रैल महीने में जब भारतीय क्रिकेट टीम ने वर्ल्डकप जीता तो उनके मैदान से कमरे तक सुरक्षाकर्मी हर तरह से मुस्तेद थे कही हमारे खिलाडियों की सुरक्षा में कोई सेंध न लग जाए. क्रिकेट टीम लिए रात की डिनर पार्टी हो या फिर डांस पार्टी हर तरह की सुविधाए उनको मुहय्या कराई जाती है लेकिन कबड्डी विश्वकप विजेता टीम के खिलाडियों के लिए ऐसा कुछ भी नहीं, सवाल तो यहाँ मीडिया पर भी खड़ा होता है. जब भी कोई भारतीय खिलाडी किसी विदेशी खेलो में अपना अच्छा प्रदर्शन करता है तो हमारा प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया उसको पूरा कवरेज देता है।


मुझे तो कभी - कभी यह देखकर बड़ा ताजुब होता है कि जब खिलाडियों के घर तक के पहुचने की खबर हम तक पहुचती है. लेकिन अगर कोई खिलाडी भारतीय खेलो में अच्छा प्रदर्शन करे तो वह हमारे मीडिया के लिए चर्चा का विषय ही नहीं होता. शायद इसीलिए हमारी कबड्डी वर्ल्डकप विजेता टीम मीडिया पर कुछ खासा असर नहीं छोड़ सकी. वर्ल्डकप विजेता भारतीय टीम देश के कुछ गिने चुने अखबारों की ही लीड खबर बनी या फिर वह खेल पेज तक ही सीमित रही. वर्ल्डकप जीतने के एक दिन बाद खिलाडियों कों मीडिया ने पूरी तरह से नदारद कर दिया. आखिर कबड्डी वर्ल्डकप विजेता खिलाडियों के साथ ही ऐसा सौतेला व्यवहार क्यों? क्रिकेट वर्ल्डकप जीती भारतीय टीम का कवरेज मीडिया ने खिलाडियों के एयरपोर्ट से लेकर उनके घर तक पहुचने की खबर हमको लगातार पहुचाई इस कवरेज में दोनों मीडिया की भूमिका लगभग 50 - 50 फीसदी रही. समझ नहीं आता भारत की ये आदत कब सुधरेगी जो विदेशी खेलो कों बढ़ावा देकर उनको प्रोत्साहित करता है. जबकि हमारे ही देश में उपज रहे भारतीय खेलो को न जाने क्यों प्रोत्साहित नहीं करता ?

7 नव॰ 2011

मुझे भारतीय होने पर गर्व है


महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विवि. वर्धा में विदेशी शिक्षको के लिए हिंदी प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन 31 अक्टूबर कों किया गया. जिसका उद्घाटन विवि के कुलपति विभूति नारायण ने किया . दस दिनों तक चलने वाली इस कार्यशाला में देश के हिंदी विशेषज्ञ, विदेशी शिक्षको कों हिंदी की बारीकियो के बारे में और हिंदी पढ़ाने के लिए किस तरह की दिक्कते सामने आती है. इन सब बातो पर चर्चा जारी है. न्यूजीलेंड से आई भारतीय मूल की सुनीता नारायण जो न्यूजीलेंड के वेलिंग्टन हिंदी स्कूल में पढ़ाती है. सुनीता इस कार्यशाला के ज़रिए हिंदी की बारीकियो कों सीख रही है. विवि में एम. फिल. जनसंचार के शोधार्थी ललित कुमार कुचालिया की " सुनीता नारायण" से एक खास बातचीत -

प्रश्न 1: न्यूजीलेंड में हिंदी भाषा कों लेकर किस तरह की मान्यता है ?

उत्तर : न्यूजीलेंड में सभी लोग हिंदी से परिचित है अभी वहा पर हिंदी की ऐसी कोई औचारिक पढाई तो नहीं है लेकिन इतना ज़रूर है जो लोग यह जानते है की भारत में हिंदी सबसे ज्यादा बोली जाती है. वही लोग हिंदी कों मान्यता देते है .

प्रश्न 2: न्यूजीलेंड में पढाई जाने वाली हिंदी अन्य देशो के मुकाबले किस तरह से भिन्न है ?

उत्तर : जैसा की मैंने पहले कहा की हिंदी की अभी कोई ओपचारिक पढाई तो नहीं है लेकिन 9 से 10 कुछ छोटी - २ सामुदायिक , पाठशालाए है जहा अलग से हिंदी पढ़ाने के लिए हर शनिवार और रविवार की शाम कों क्लास लगती है . इसके आलावा कही - कही पर युवा और बड़े लोगो कों हिंदी पढ़ाने के लिए अलग से क्लासे चलती है. और रही बात अन्य देशो के मुकाबले हिंदी पढ़ाने की तो हिंदी भाषा कों पढ़ाने के लिए हर देश तरह-२ की तकनीके अपनाता है . ये तो छात्रो पर निर्भर करता है कि वो किस तरह से पढ़ते है.

प्रश्न 3 : कितने ऐसे संस्थान है जो हिंदी कों प्राथमिकता देते है ?

उत्तर : कुछ पाठशालाओ के अलावा धार्मिक, सामाजिक संस्थाए है जो धर्म, सभ्यता और संकृति के साथ भाषा कों भी जोड़ देते है. धार्मिक संस्थाए रोमन लिपि में लिखकर बच्चो कों हिंदी सीखाती है. कभी- कभी जब मै उनका प्रोत्साहन करने की लिए वहा जाती हूँ और उनको देवनागरी में लिख कर बताती हूँ तो वो बड़े ही खुश होते है.

प्रश्न 4 : न्यूजीलेंड का मीडिया हिंदी से किस तरह जुडा है, चाहे वह प्रिंट मीडिया या फिर इलेक्ट्रोनिक मीडिया हो या कोई अन्य जनमाध्यम ?

उत्तर : न्यूजीलेंड में ऐसा कोई न्यूज़ पेपर नहीं है जो हिंदी से जुडा हो लेकिन हाँ इतना ज़रूर है. मोर्य चैनल पर कभी कभी हिंदी की फिल्मे दिखाए जाती है और कुछ ऐसे क्षेत्रीय टीवी चैनल है जिन पर भारत से प्रसारित होने वाले ज़ी टीवी के लगभग सभी कार्यक्रम दिखाए जाते है. ज़ी टीवी की लोकप्रियता वहा भारतीयों के बीच सबसे अधिक है, बहुत से लोग ज़ी टीवी पर आने वाले सीरियल से ही जुड़े रहते है.

प्रश्न 5 : न्यूजीलेंड के लोगो में हिंदी की दिलचस्पी किस तरह की है ?

उत्तर : मुझे कभी - कभी यह सुनकर बड़ा ही अजीब लगता है कि हमारे भारतीय लोग हिंदी कों उतनी सहजता से नहीं लेते जितना उन्हें लेना चाहिए. उन्हें लगता है कि अगर हम हिंदी नहीं सीखेंगे तो हमारा सिर ऊँचा नहीं होगा लेकिन ऐसा नहीं है. आप ज़रा सोचिए में जिस देश में रहती हूँ वहा हिंदी रोज़ तो इस्तेमाल नहीं होती लेकिन जो लोग हिंदी में विश्वास करते है वो अपने बच्चो कों और अपने आपको इसमें लीन रखते है .

प्रश्न 6 : न्यूजीलेंड में रहने वाले भारतीय अपने त्योहारों कों किस तरह से मनाते है ?

उत्तर : मै खुद एक भारतीय होने के नाते अपने सभी त्योहारों कों भारतीय परंपरा के अनुसार मनाती हूँ. न्यूजीलेंड में सभी लोग अपने-२ त्योहारों कों बड़ी ही धूम धाम से मनाते है. न्यूजीलेंड के आकलेंड, वेलिंग्टन, किंग्स्टन जैसे शहरों में दीवाली के मौके पर मेले लगते है. ये सभी योजनाए वही के लोगो दुवारा तय की जाती है. न्यूजीलेंड की "Aozia Newzealand Foundation" संस्था जिसको वहा की सरकार दुवारा फंडिंग किया जाता है. वही इस तरह के कार्यक्रमों की योजना बनाती है, जो चीनी और भारतीय त्योहारों कों बड़ा ही महत्व देती है. दुर्गा नवरात्रों में वहा के बाज़ार भारतीय बाजारों की तरह सजाए जाते है. तभी तो सभी त्यौहार बड़े ही उत्साह के साथ मनाये जाते है. किसी भी तरह का ऐसा कोई कोई बंधन नहीं है चाहे होली का त्यौहार हो, या फिर ईद , बैशाखी का त्यौहार ही क्यों न हो ? मै तो यह मानती हूँ कि भारत से दूर रहकर अपने त्योहारों कों मनाने का अलग ही मजा होता है.

प्रश्न 7 : हिंदी पढानें में न्यूजीलेंड के सामने किस तरह की दिक्कते आती है ?

उत्तर : दिक्कते तो बहुत है सही ढंग से जो पढाना है. हम मोरिशस, फिजी और भारत से जो पाठ्यक्रम मंगाते है हमें उस पर कई बार विचार विमर्श करके सोचना पडता है कि बच्चे हिंदी सीख भी पाएंगे की नहीं, सब कुछ अंग्रेजी माध्यम होने के कारण उनको हिंदी पढ़ा पाना बहुत ही मुश्किल है. इस बार से खोली गई तीन शाखाओ में से एक शाखा जिसमें हिंदी पढने छात्रो की संख्या बढती जा रही है. हमारे पास सामग्री है पर हिंदी पढ़ाने के लिए उतने टीचर नहीं है. कभी- कभी तो मै सोचती हूँ कि ये सब कैसे हो पाएंगा? लेकिन जैसे - तैसे करके में इसका समाधान निकाल लेती हूँ .

प्रश्न 8 : कितने ऐसे संस्थान है जहा हिंदी कि पढाई होती है ?

उत्तर : देखिए जैसाकि मैंने पहले कहा था कि 9 से 10 छोटी - छोटी ऐसी पाठशालाए चलती है जहा पर हिंदी की पढाई होती है. न्यूजीलेंड का सबसे बड़ा नगर आकलेंड जहा सबसे अधिक भारतीय ही रहते है. हिंदी पढने वालो कि तादात यहाँ लगभग 500 से 600 है. मै जिस वेलिंगटन हिंदी स्कूल में पढ़ाती हूँ वहा पर भी काफी तादात में लोग हिंदी पढ़ाने के लिए आते है . इस बार हमने अलग - २ शहरों में तीन शाखाए खोली है जिसमे हिंदी की पढाई होती है.

प्रश्न 9 ; भारत - न्यूजीलेंड के संबंध आप किस तरह से देखती है ?

उत्तर : न्यूजीलेंड के लोग भारत कों बहुत ही पसंद करते है. इसीलिए जब में अपने छात्रो से पूछती हूँ कि आप हिंदी क्यों सीखना चाहते हो तो वे कहते है कि हम हिंदी सीखकर भारत में आगे की पढाई करना चाहते है और हम भारत कों प्रेम भी करते है. अगर व्यापार की द्रष्टि से देखे, तो दोनों देशो के बीच आपसी संबंध कुछ वर्षो में ओर भी बेहतर हुए है. न्यूजीलेंड के प्रधानमंत्री जॉन के जब भारत यात्रा पर आए तो वहा के लोगो कों भारत से ओर भी ज्यादा उम्मीद बांध गई . कितने ही ऐसे एनजीओ है जो भारत आकर अपनी सेवा देते है. जब गैर भारतीयों लोगो कों में भारत से जुड़ा हुआ पाती हूँ, तो मुझे बहुत ही ख़ुशी होती है.

प्रश्न 10 : जैसाकि आप ने पहले बताया की मै खुद एक भारतीय हूँ फिर आपका न्यूजीलेंड कैसे जाना हुआ ?

उत्तर : मेरे पूर्वज यूपी के प्रतापगढ़ जिले के पथरा गाँव से थे जो बहुत पहले ही फिजी में आकर बस गए थे. मै उनकी तीसरी पीढी से हूँ. पिछली बार जब में अपने गाँव गई तो अपने परिवार वालो के बीच पाकर मुझे बहुत ही अच्छा लगा. अब मै बार - बार अपने गाँव आना चाहती हूँ, क्योंकि मुझे भारतीय होने पर बड़ा ही गर्व महसूस होता है कि भारत से दूर रहकर मै विदेश में हिंदी पढ़ाती हूँ.

www.mediaaagblogspot.com ( मेरे विचार) से बातचीत करने के लिए आपने समय निकला इसके लिए आपका बहुत -२ शुक्रिया .
- जी धन्यवाद

3 नव॰ 2011

इंदिरा गाजिएवा से बातचीत / सोवियत संघ के विघटन के बाद भारतीय भाषाओं की स्थिति अच्‍छी हुई



म.गा.अं. हि. विवि. वर्धा में विदेशी शिक्षको के लिए हिंदी प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन ३१ अक्टूबर कों किया गया.. दस दिनों तक चलने वाली इस कार्यशाला में देश के हिंदी विशेषज्ञ ईन विदेशी शिक्षको कों हिंदी की बारीकियो के बारे में बतायंगे. कार्यशाला में हिस्सा लेने आई रूस की इंदिरा गाजिएवा जो रूस के रुसी मानवीय सरकारी विवि में हिंदी पढ़ाती है. इस खास मौके पर एम. फिल. जनसंचार के शोधार्थी ललित कुमार कुचालिया ने " इंदिरा गाजिएवा " से बातचीत की. उसी के कुछ अंश --


प्रश्न - रूस में हिंदी के प्रति युवाओ में किस तरह की लोकप्रियता है ?


उत्तर - जहा तक लोकप्रियता का सवाल है सबसे पहले तो मै यह कहना चाहती हूँ रुसी लोगो कों भारतीय संस्कृति अच्छा लगना. दूसरा दोनों देशो के आपसी मैत्री संबंध अच्छे होना, ये दोनों ही बाते उनको भाँति है. लेकिन रुसी लोग जब भारत आते है चाहे टूरिस्ट के उद्देश्य से आए, चाहे व्यापार के उद्देश्य से आए या फिर पढाई के उद्देश्य से भारत आए तो कही न कही ये सब चीजे उनको अपनी और आकर्षित करती है. इसीलिए वहा के युवाओ मै हिंदी के प्रति काफी लोकप्रियता बनी हुई है ।


प्रश्न - सोवियत संघ के दौरान रूस मै हिंदी और उर्दू के काफी स्कूल थे लेकिन अब क्या स्थिति है?


उत्तर - देखिए जब से सोवियत संघ अलग हुआ है तब से स्थिति में काफी सुधार आया है. इससे पहले रूस के कई स्कूलों में हिंदी, उर्दू पढाई जाती थी लेकिन अब इनके अलावा भारत में बोली जाने वाली तमिल, बंगला, और मराठी भाषाए रूस के छ: विवि में पढाई जाती है. आप देखिए की सोवियत संघ के खत्म होने बाद कितनी भाषाए रूस में पढाई जाने लगी जबकि पहले ऐसा संभव नहीं था. और मै तो मानती हूँ की रूस के लिए यह अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है .


प्रश्न - रूस में हिंदी कों पढ़ाने के लिए हिंदी व्याकरण - अनुवाद के किस ढ़ाचे का उपयोग किया जाता है ?



उत्तर - रूस में हिंदी पढ़ाने के लिए इतने टीचर ही कहा थे कम ही लोग थे जो हिंदी साहित्य के बारे जानकारी रखते थे लेकिन आज भी हिंदी पढ़ाने के हिंदी साहित्य का सहारा लिया जाता है. कुछ वर्षो में हिंदी व्याकरण और अनुवाद का ढ़ाचा एक मौखिक रूप धारण का चुका है. लोग मौखिक ही बोलना चाहते है लिखना नहीं इसीलिए रुसी के युवा 6 महीने या एक साल में ही हिंदी सीखने की लालसा रखते है. एक तरह से देखा जाए तो हिंदी सीखने कों लेकर उनमे होड़ मची है. हिंदी पढ़ाने के लिए पाठ्य पुस्तक अमेरिका , ब्रिटेन से मंगाई जाती है लेकिन जो किताबे रुसी विद्वानों दुवारा लिखी गई उनकी हिंदी कुछ अलग ही तरह की है जिसको पढ़ाने में दिक्कत आती है लेकिन अब ऐसा नहीं है



प्रश्न - रुसी मीडिया का हिंदी भाषा के प्रति क्या नजरिया है ?


उत्तर - कोई ऐसी खबर , सूचना, जानकारी है की हिंदी विश्व भाषा होनी चाहिए . मै एक हिंदी टीचर होने के नाते इस बात से सहमत हूँ की या फिर मेरी दूसरी राय है कि भविष्य में शुद्ध इंग्लिश और हिंदी नहीं चलने वाली. बल्कि हिंग्लिश भाषा प्रचलन में आएगी जिसको इंग्लिश और हिंदी से मिलाकर बनाया जायेगा. शुद्ध हिंदी तो साहित्य में ही सिमट कर रह जाएगी. हिंग्लिश का ही भविष्य उज्जवल है. बीस सालो के दौरान रुसी भाषा एकदम परिवर्तन आया है. क्योंकि ये सब सूचना तकनीकी क्रांति की देन है. आप देखेंगे रुसी मीडिया में हर महीने हिंग्लिश भाषा के शब्द देखने और सुनने कों मिल जायेंगे. वहा की न्यूज़ पेपर, इंटरनेट न्यूज़ पोर्टल और इलेक्ट्रोनिक मीडिया में भी हिंग्लिश के शब्द काफी प्रचलित है.


प्रश्न - भारतीय खबरों कों रूस में किस तरह से पेश किया जाता है ?



उत्तर - जब तक सोवियत संघ था तब वहा पर कम्युनिस्ट न्यूज़ पेपर चलता था जिसका नाम "जनयुग" था जो ज्यादातर भारतीय खबरों कों प्राथमिकता देता था. लेकिन उस न्यूज़ पेपर कों केवल वही लोग पढ़ते थे जो हिंदी पढना और बोलना जानते थे. हाल ही में रूस में इस तरह का कोई न्यूज़ पेपर नहीं है जो भारतीय खबरों कों प्राथमिकता दे. भारत में जब से टीवी की शुरुआत हुई उसी दौरान से भारतीय खबरों कों इंटरनेट के ज़रिए उठाकर दिखाया जाता है.


प्रश्न - भारत की कला संस्कृति से आप कितनी प्रभावित है?



उत्तर- भारतीय कला संस्कृति के बारे मै बंया कर पाना थोडा ही मुश्किल है विषय ही इतना बड़ा है. वैसे हर हफ्ते मास्को के रूसी-भारतीय सांस्कृतिक संगठन "दिशा", भारतीय दूतावास, सेंट्स पिटरबर्ग में भारतीय कला संस्कृति के कार्यक्रमों कों हम लोग देखने के लिए जाते है. जो लोग नृत्य, कलाकार वहा आते है. उनको देखते है, उनके बारे में पढ़ते है. उनसे काफी कुछ सीखने कों मिलता है. अभी एक दो महीनो से मास्को में कला संस्कृति के कार्यक्रम हो रहे है भारत के अलग -२ प्रदेशो के कलाकार वहा पर कार्यक्रम कि प्रस्तुति दे रहे है.


प्रश्न - भारत- रूस के संबंध के बारे में आप क्या कहना चाहेंगी ?


उत्तर- देखिए हम दोनों देश हमेशा से एक भाई - बहन की तरह है. रुसी लोग, जो अब सोवियत संघ में चले गए है वो भी भारत कों काफी मानते है. जब हम लोग जनवरी में गोवा घूमने, हिंदी दर्शन सीखने या नृत्य सीखने की लिए यहाँ आते है तो हम आपने आपको कही न कही भारत से जुड़ा हुआ पाते है. इसीलिए में कहूँगी कि भारत और रूस के संबंध हमेशा से अच्छे है


प्रश्न - रूस के कितने विवि में हिंदी पढाई जाती है ?


उत्तर - रूस के छ: विवि में हिंदी पढाई जाती है जो राज्य सरकार के अधीन है।


- http://www.mediaaagblogpsot.com/ से बातचीत करने के लिए आपने समय निकला इसके लिए आपका बहुत -२ शुक्रिया



- इंदिरा गाजिएवा - जी धन्यवाद



2 नव॰ 2011

अंतरराष्ट्​रीय हिंदी विवि वर्धा में विदेशी शिक्षको की कार्यशाला का आयोजन


म। गा.अं. हि. विवि वर्धा में 31 से 09 नव. तक चलने वाली विदेशी शिक्षको के लिए अभिविन्यास कार्यशाला का उद्घाटन कुलपति विभूति नारायण राय ने किया. दस दिनों तक चलने वाली इस कार्यशाला में श्रीलंका, मोरिशस, ज़र्मनी, क्रोशिया, बेल्जियम, चीन, न्यूजीलेंड ,रशिया, हंगरी, के शिक्षक हिस्सा ले रहे है . विवि. में विदेशी शिक्षको के लिए यह कार्यक्रम दोबारा हो रहा है, इसी साल ३ से 15 जनवरी कों यहाँ पहला आयोजन कराया गया था .


इस कार्यशाला के अंतर्गत विदेशी शिक्षको के लिए यह आयोजन इसलिए ज़रूरी है कि जिस उद्देश्य के साथ विदेशी छात्र बड़े पैमाने पर हिंदी सीखने के लिए भारत आते है। और जब यहाँ से हिंदी सीखकर स्वदेश जाते है, तो क्या वे उन उद्देश्यों का पालन करते है या फिर दुनिया भर के विवि और संस्थानों में हिंदी पढ़ाने के लिए जिस तरह की समस्याए आती है उसमे महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विवि. भी अपनी अहम भूमिका निभाना चाहता है. कुलपति राय बताया कि दुनिया भर के 150 विवि में हिंदी सबसे ज्यादा पढाई जाती है और विश्व की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओ में से एक है.

विवि. के प्रतिकुलपति एवं विदेशी शिक्षण प्रकोष्ठ के प्रभारी प्रो. ए. अरविन्दाक्षन का कहना है की विदेशो के विभिन्न विवि. में हिंदी पढ़ाने वाले शिक्षको के लिए यह दूसरा आयोजन है इससे पहले प्रथम आयोजन में मोरिशस, ज़र्मनी, चीन ज़र्मनी, बैंकाक आदि विदेशी शिक्षको से हमे अच्छा परिणाम मिला. इसीलिए उन्होंने इस प्रकार के आयोजन की तारीफ भी की थी. दस दिन तक चलने वाली इस कार्यशाला में हिंदी के एतिहासिक परिप्रेक्ष्य, वर्तनी, वाक्य रचना, सिद्धांत, हिंदी भाषा प्रोद्धोगिकी और शिक्षण सामग्री निर्माण आदि विषयों पर चर्चा होगी. समय - २ पर देश भर से हिंदी के विशेषज्ञो कों यहा बुलाया जायेगा जो इन्हें हिंदी के बारे में काफी विस्तार से बतायंगे.