22 मई 2011

मैं उजला ललित उजाला हूँ!

मैं उजला ललित उजाला हूँ!

मैं हूँ तो फिर अंधकार नहीं है!

तेरे मन के तम से लड़ता हूँ
तेरी राहें उजागर करता हूँ
आओ मुझे बाहों में भर लो!
मुझ सा कोई प्यार नहीं है

मैं हूँ तो फिर अंधकार नहीं है!

तेरे रोम-रोम में भर जाता हूँ
तेरे दर्द को मैं सहलाता हूँ
आओ मुझे देह में भर लो!
मुझ सा कोई उपचार नहीं है

मैं हूँ तो फिर अंधकार नहीं है!

यूं तो नहीं मेरा कोई भी रूप
हूँ मैं ही चांदनी, मैं ही धूप
आओ मुझे अंजुली में भर लो!
मुझ में कोई भार नहीं है

मैं हूँ तो फिर अंधकार नहीं है!

क्यों मन में भय को भरते हो
क्यों अंधियारे से डरते हो
आओ मुझे अंखियों में भर लो
मुझ सा कोई दीदार नहीं है

मैं हूँ तो फिर अंधकार नहीं है!
मैं उजला ललित उजाला हूँ!

ललित कुमार दुवारा


9 मई 2011

माँ....... तेरी ऊँगली पकड़ कर चला ....



माँ.. तेरी ऊँगली पकड़ कर चला

ममता के आँचल में पला .....


हँसने से रोने तक तेरे ही पीछे चला

बचपन में माँ जब भी मुझे डाटती.....


में सिसक -२ कर घर के किसी कोने में जाकर रोने लगता

फिर बड़े ही प्रेम से मुझे बुलाती ॥


कहती, बेटा में तेरे ही फायदे के लिए तुझे डाटती

फिर में थोडा सहम जाता और सोचता...


माँ, मेरे ही फायदे के लिए मुझे डाटती

जब भी में कोई काम उनके अनुरूप करता ...


तो मुझे फिर से डाट देती ....

आज भी माँ कि डाटती खाने का बड़ा ही मन करता ---


माँ कि डाट, मुझे हर बार नई सीख देती ....


आज भी जो लोग माता पिता का चरण स्पर्श कर आशीर्वाद ले, दिन कि शरूवात करते है. वे मानते है कि अगर माँ का आशीर्वाद मिल गया तो आस [पास कोई संकट नहीं फाटक सकता, कोई कुछ बिगाड नहीं सकता ....

ललित कुमार कुचालिया..... (देहरादून )

6 मई 2011

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इस मासूम कों आखिर क्या बीमारी लगी है ................ ऐसा ही एक मामला कानपुर के अस्पताल में देखने कों मिला है.........