29 अक्तू॰ 2010

गुम होता भारत ----------







गुम होता भारत
उ.प्र. में भूमी अधिग्रहण का ताज उदारण हमारे लिया एक दम नया ज़रूर है अगर हमको इससे सिख नही मिली तो फिर आने वाला वक़्त और भी भयानक हो सकता है जिस प्रकार से उ.प्र. राज्य सरकार किसानो की ज़मीन कों कम दामो में खरीदकर नोएडा यमुना एक्सप्रेस हाई -वे बनाकर नोएडा से आगरा १६५ किलोमीटर की दूरी कों मात्र ९० मिनट में तय करवाना चाहती है



किसानो दुवारा भूमि अधिग्रहण का आन्दोलन अलीगढ से शुरू होकर पूरे पश्चिमी उ.प्र. में जंगल में आग की तरह फेल चूका है .यह आन्दोलन रूपी आग अब तक न जाने कितने लोगो कों स्वहा कर चुकी है . राज्य सरकार किसानो की जमीन कों हडपने की तेयारी में नोएडा यमुना-एक्सप्रेस का निर्माण जे.पी. समूह के साथ मिलकर कर रही है . इस हाई वे के आस पास चार जिलो ( हाथरस , आगरा ,मथुरा ,अलीगढ ) की भूमि पर जो अधिग्रहण किया जा रहा है. गुस्से से बेकाबू हुए किसान अब ज़मीन की बचाने की लिए मरने - मारने कों तेयार है. किसानो का यह भी कहना है .कि राज्य सरकार हमारे साथ नाइंसाफी कर रही है. नोएडा के आस पास के किसानो कों ज़मीन का मूल्य ऊचे दामो पर अदा किया जा रहा है .जबकि आगरा , मथुरा के किसानो कों वही भूमि सस्ते दामो पर खरीदी जा रही है . नाजायज तरीके से भूमि अधिग्रहण के इस भेदभाव से अलीगढ के किसानो ने आन्दोलन का रास्ता पकड़ लिया ही




चोदह अगस्त कों किसान नेता राम बाबू कठेरिया की गरफ्तारी से गुस्साए किसानो पर पुलिस दुवारा की गयी फायरिंग से मारे गए युवको के कारण , किसानो ने स्वतंत्रता दिवस के मोके पर लाठी चार्ज कि , जब देश आज़ादी का ६३ वा स्थापना दिवस मना रहा था. ठीक उसी समय यमुना- एक्सप्रेस हाई वे निर्माण पर आन्दोलन करने वालो ने चालीस वाहनों कों आग की हवाले कर दिया . हर किसान के लिए उसकी ज़मीन का हर एक टुकड़ा उसके जिगर के टुकडे से कही बढ़ कर होता है . पहले तो किसान भी पैसे की चाह में अंधे हो बेठे थे . अब अपनी ज़मीन बिल्डरों कों बेचकर पछता रहे है . उस ज़मीन से मिला पैसा अब जब खत्म होने कि कगार पर है . तब उनको अपनी ज़मीन याद आ रही है.जो किसान समझदार निकले उन्होंने पानी ज़मीन बचाए रखी . कल तक जिस ज़मीन में हमको फसल हरी भरी दिखती थी . आज उसी ज़मीन में ईट पथरो, और कंक्रीट से बने बड़े -२ चमचमाते शोपिंग माल दिखाई देते है . जो खुद हमारी ही जेब ढीली करवा रहे है .

उसी ज़मीन में लगे बड़े-२ ऊद्योग धंदे और धुवा रहित फेक्ट्रिया जो की पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा खतरा बनी है, और हमरे ही लिए मोत का साया भी . सन उन्नीस सो पचास से लेकर अब तक किसानो कों ओधिगिकरण के लिए बड़ी तादाद में अपनी ज़मीन गवानी पड़ी. जिस देश की सत्तर फीसीदी आबादी कृषि पर निर्भर करती है जिसका मात्र सत्रह फीसीदी हिस्सा बचा है. वेश्वीकरण के इस दोर में भारत कृषि प्रधान देश होने के कारण कंक्रीट से बने शोपिंग माल और बड़ी -२ इमारतो के चक्करों में आकर अपनी धरोहर कों ही तबाह करने पर क्यों तुले है ? . राज्य सरकार प्रोपर्टी डीलर की भूमिका में आकर और कारपोरेट घरानों के चक्कर में पड़कर अपनी खेती की जमीन कों बर्बाद करवाने पर तुले है

... लेकिन याद रहे वह दिन भी दूर नहीं जब हमारे देश में हर इंसान एक- एक दाने के लिए तरसेगा ॥ इसी प्रकार कारपोरेट जगत इंडिया बनाने की होड़ में अपने इस लाडले से भारत कों गुम करने में लगा है.......


ललित कुमार (मेरठ),
प्रसारण पत्रकारिता, (भोपाल)
मोबाईल नम्बर -09557605759

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें