18 मार्च 2010

सपना ही रह गया ..................




२८ फरवरी को हाकी के महाकुम्भ का आगाज़ जैसे ही शुरू हुआ था । ......... लोगो की निगाहे भारतीय हाकी टीम पर टिकी हुई थी .... अपने शुरूआती मैच में चिर प्रतिदुंदी पाकिस्तान टीम को ४-१ से हरा कर ये साबित कर दिया था । इस बार भारतीय हाकी टीम कुछ अच्छा करेंगी ; लेकिन जैसे ही हमारी टीम ऑस्ट्रेलिया , स्पेन, इंग्लैंड से भिड़ी तो असलियत सबके सामने आ गयी । लोगो को विश्वास नहीं हो रहा था .......... क्या ये वही टीम है । जिसने पाकिस्तान टीम को पहला मैच में हराया था विश्वकप से पहले भारतीय टीम के बारे में बड़ी -बड़ी बाते की जा रही थी । यहीं नहीं उनको दिया जाने वाले मेहनताने पर भी काफी बखेड़ा हुआ था । लेकिन इस हार को कोई टाल नहीं सका । दरह्सल हम हाकी को लेकर कभी चिंतित नहीं रहे है। हमने हाकी को राष्ट्रीय खेल तो बना दिया । जहा धोनी के चोको -छक्को की कीमत आकी जाती है..... वही प्रभुजोत के एक गोल की कीमत लग जाये तो गनीमत है । भारतीय हाकी की जो दुर्दशा हुए है .... इस बात को खेल संघ भी नहीं समझ पा रहा है।




चयन के लिहाज से देखा जाये तो टीम तो अच्छी थी । बाद के मैच में हमको शिवेंद्र सिंह की कमी ज़रूर खली । जिसका खामियाजा हमको भुगतना पड़ा । इसी के कारण हार का मुह देखना पड़ा ....
राजीव गाँधी खेल से सम्मानित पूर्व खिलाडी" धनराज पिल्लै"का कहना की देश की हाकी को प्रोफेशनल की ज़रुरत है। जिस दिन टीम में ये आ गया, तो समझो टीम का लेविल अपने आप ऊपर उठ जायेगा । हमारे देश और यूरोपीय देश की हाकी में ज़मीं आसमान का अंतर है। हमे इस बात पर ध्यान देना होगा की विदेशो की तरह हमारे खिलाडियों को भरपूर सुविधाए उपलब्ध करायी जाये । तभी हमारे खिलाडी अच्छा प्रदर्शन करेंगे ।खेल मंत्री ने भी इस बात को स्वीकार कर लिया है।
खेल के मामले अगर हम बात करे चीन की तो वो इसमें भी हमसे काम में आगे है। जितनी सुविधा वो अपने खिलाडियों को देते है। उतनी सुविधा और कोई देश नहीं दे सकता। अब दुःख हमें इस बात का है। सात बार वर्ल्ड कप जीत चुकी भारतीय टीम भविष्य में सुनहरे मोके की तलाश में जुटी है।


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