रामलीला मैदान में अब तक जितनी भी रैलिया हुई वो सारी राजनितिक रैलिया थी. लेकिन इन सबके बीच किसी गैर राजनितिक दल ने देश की सरकार कों झुकने के लिए मजबूर कर दिया. और सरकार कों बता दिया की अन्ना के क्या मायने होते है ? जिस अन्ना के आसरे लोगो का जनसैलाब सडको पर उमड़ा, उन्होंने देश की सरकार के भीतर घुसे भ्रस्टाचारी रूपी रावण कों खत्म करनी की ठानी. एक ओर अन्ना का यह भी कहना है की यह तो अभी आधी जीत हुई है. कही न कही अन्ना का ये आन्दोलन आगे भी जारी रहेगा, इससे लगता कि अन्ना अब किसी से नहीं रुकने वाले नहीं है. जिस अहिंसावादी तरीके से यह आन्दोलन हुआ जिसको विदेशी मीडिया में भी तवज्जो मिली वो भी अपने आप में काबिले तारीफ है.
सवाल एक अन्ना का नहीं है सवाल है समूचे देश का जो भ्रस्ताचार की आग में झुलस रहा है.ऐसे में अगर एक अन्ना आगे आकर देश का प्रनिधित्तिव करे तो क्या बुराई है ? कहते है देश कों चलाने के लिए संसद के भीतर नई - नई परिभाषाए गढ़ी जाती है, लेकिन रामलीला मैदान में अन्ना ने देश कों चलाने के लिए, एक नई परिभाषा कों जन्म दिया. और बता दिया की देश अब आपकी परिभाषा से चलने वाला है. जो जनता तय करेगी वही अब आपको करना पड़ेगा. क्योकि संसद से बड़ी जनसंसद है.
रामलीला मैदान में जैसा इस बार हुआ देश के इतिहास में अब तक ऐसा कभी नहीं हुआ, राम रूपी अन्ना ने भारत सरकार के भीतर छुपे रावण का अंत तो कर दिया लेकिन लोगो के मन में अभी भी यही सवाल बना हुआ है कि देश में भ्रस्टाचार खत्म होगा कि नहीं
"इसलिए कहा जाता है की बुराई पर अच्छाई की जीत."
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