मैं उजला ललित उजाला हूँ!
मैं हूँ तो फिर अंधकार नहीं है!
तेरे मन के तम से लड़ता हूँ
तेरी राहें उजागर करता हूँ
आओ मुझे बाहों में भर लो!
मुझ सा कोई प्यार नहीं है
मैं हूँ तो फिर अंधकार नहीं है!
तेरे रोम-रोम में भर जाता हूँ
तेरे दर्द को मैं सहलाता हूँ
आओ मुझे देह में भर लो!
मुझ सा कोई उपचार नहीं है
मैं हूँ तो फिर अंधकार नहीं है!
यूं तो नहीं मेरा कोई भी रूप
हूँ मैं ही चांदनी, मैं ही धूप
आओ मुझे अंजुली में भर लो!
मुझ में कोई भार नहीं है
मैं हूँ तो फिर अंधकार नहीं है!
क्यों मन में भय को भरते हो
क्यों अंधियारे से डरते हो
आओ मुझे अंखियों में भर लो
मुझ सा कोई दीदार नहीं है
मैं हूँ तो फिर अंधकार नहीं है!
मैं उजला ललित उजाला हूँ!
ललित कुमार दुवारा …
bahut sundar kavitaa ..hardik badhai ....
जवाब देंहटाएंललित जी अपने ब्लॉग से शब्द पुष्टि करण हटा लें
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