हर बार मेरे मन मे बस यही प्रश्न गूंजता है,
कि आखिर मै कोन हूँ ..............?
मै जिस संसार कि मानव प्रक्रति मे रहा
उसी मानव प्रक्रति के बीच से निकलकर बस यही सोचता ,
कि आखिर मै कोन हूँ .................?
कोन हूँ का प्रश्न मेरे मन को नोच डालता,
ओर समुन्द्री की तरह हिलोरे लेने लगता
मन के किसी कोने में छूपा यही प्रश्न मुझसे फिर पूछता
की आखिर मै कोन हूँ .................?
जिस माँ- बाप के हाथो से मेरा,
पालन पोषण बड़े ही चाव से हुआ, फिर भी में उनसे पूछता
की आखिर मै कोन हूँ .................?
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